* क्षणिका *
समझ नहीं आता
जिंदगी इतनी जिद
क्यूँ करती है
जीने के तमाम
रास्ते रोककर
जीने की कसम
देती है ।।
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आदमी
लिखता है
और
लिखकर
उसे
बेचना
चाहता है
क्या
वास्तव में
वह
उसकी
सही
कीमत
पाता है ।।
?मधुप बैरागी