क्षणिकायें
क्षणिकायें
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मैने जब सुनी
दिल की आवाज सुनी;
दुनिया की सुनता,
तो दीवाना होता::राजेश’ललित’
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मुझसे मेरा हाल न पूछो,
मुझसे मेरी ख़ता न पूछो:
वजूद मेरा चुरा लिया जिसने
उससे मेरी सजा तो पूछो।
राजेश’ललित’
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मुझे थी जो सुनानी ,
वो अपनी कहानी :
कोई और सुना गया,
मैं हाथ मलता रह गया:
——–राजेश’ललित
चित्रगुप्त ने देखा,
मेरे कर्मों का लेखा,
चश्मा उतारा पोंछा;
लगाया फिर देखा,
सारा हिसाब लगा,
अगले सौ जन्म भी;
तुम बनो आदमी;
यह सजा मिली,
तुम्हारे कर्मों की।
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राजेश’ललित’
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मेरे पास था,
बस मुट्ठी भर प्रेम;
बांटने तो गया,
किसी ने न लिया;
अब कोई नहीं लेता;
देखना तुम,
नफ़रतों के बंजर में,
प्रेमांकुर फूटेगा ज़रूर :
देर हो जाये,
ये अलग बात है।
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राजेश’ललित’
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आंख बेशक ठीक हो गई,
दृष्टी भी साफ़ हो गई;
दुनिया में धुँध ,
वैसे ही छाई रही;
जैसे पहले थी।
पता नहीं!
दुनिया को क्या हुआ?
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राजेश’ललित’
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जब करो
मेरे घाव पर
चोट करो
लगे कि
दर्द ज़िंदा है
लगे मैं भी
ज़िंदा हूं।
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राजेश’ललित’
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खेत हैँ
खलिहान हैं
ठंड है
किसान हैं
लहलहाती
फ़सल है
पकेगी जब पकेगी
कटेगी सो कटेगी
बस भाव तय होंगे
दिल्ली में
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राजेश’ललित’