क्षणिकाएं
1.
चारों ओर अपराध, पनपने लगे हैं
घर के दरवाजे बंद कर , सोने लगे हैं लोग
2.
ये जिन्दगी खुदा की , अनमोल नियामत है
फिर भी अपनी जिन्दगी से, क्यों खेलते हैं लोग
1.
चारों ओर अपराध, पनपने लगे हैं
घर के दरवाजे बंद कर , सोने लगे हैं लोग
2.
ये जिन्दगी खुदा की , अनमोल नियामत है
फिर भी अपनी जिन्दगी से, क्यों खेलते हैं लोग