क्षणिकाएं
क्षणिकाएं
(१)
आधे अधूरे से उपजे तुम
आधे अधूरे से खिले हम
जैसे मिटटी में बीज मिला
मिलकर पूर्ण हो गए हम !!
(२)
चहुँ और शोर है
विज्ञान का दौर हो
शिक्षित प्राणी है
सब आज ज्ञानी है
सभ्य इस संसार में
सबके सब प्रबुद्ध है,
अफ़सोस फिर भी युद्ध है !!
(3)
नगाड़े बज रहे है,
लोग चिल्ला रहे है
तालियों की गड़गड़ाहट
खुशियां मना रहे है
मगर अंदर सन्नाटा है
कुछ सुनाई नहीं दे रहा
शायद चाहत में
कुछ सुनने की
कोई आये और कहे
लो हम आ गए
तुम्हारे लिए,,,,,!!
(४)
कतार में खड़े है
अपने में सब बड़े है
कद में,
लेकिन सच में
बड़ा वही है
जो पास बिठा कर
छोटा न महसूस होने दे !!
(५)
हर कोइ कहता है,
बातो का हल
बातो से निकलता है,
अगर ऐसा है
तो बातों बातों में
झगड़ा क्यों होता है !!
स्वरचित -मौलिक – डी के निवातिया