क्षणिकाएँ
क्षणिकाएँ
“बात”
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कौन कहता है
तन्हाई अकेली
और खामोशी मौन होती है?
जब मिल बैठती हैं
एक साथ तो
बात ही बात होती है।
“सूनापन”
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मन व्यथित हो उठा
पाकर तन्हाई में
अँधेरा जीवन
कितनी बेचैनी, दर्द
और सूनापन।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका- साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी। (मो.-9839664017)