क्रोध
भड़कती हुई ज्वाला नहीं,
दहकती हुई आग नहीं,
चढ़ता हुआ ज्वार नहीं,
उतरता हुआ खुमार नहीं,
कहीं और भी तीव्र है,
अंधकार में लीन है ।…..(१)
काल का आकाल नहीं,
तूफान का विनाश नहीं,
भूकंप का प्रपंच नहीं,
आसमान का कहर नहीं,
सागर की गहराई नहीं है,
शिखर की ऊँचाई झुकी है ।…(२)
नहीं; मानव की आग है,
क्रोध का निवास हैं,
हृदय की भड़ास है,
नफरत की आग है,
अंधकार का प्रकाश है,
असहज एक ताप है ।…(३)
धैर्य का विनाश है,
शांति का नाश है,
क्रोध की आग है ,
उन्नति का ह्रास है ,
भ्रम का शूल है,
विध्वंस का मूल है ।…(४)