क्रोध
क्रोध एक – दो मिनट का ,
बखेड़ा खड़ा हो गया,
पूरी जिंदगी का।
क्रोध में रहा न निरंतर स्वंय पर,
क्रोध इतना भी न पालो की,
खुद के लिए ही पागलपन बन जाए।
कही जिंदगी न यूंही ख़तम हो जाए।
गुस्सा हो बस छुईमुई सा
कि शुरू होने से पहले ख़तम हो जाए,
बात बिगड़ते बिगड़ते बन जाए