क्रोध नहीं सिर्फ प्यार करो
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क्रोध नहीं सिर्फ प्यार करो।
प्रेम – रस की बौछार करो।
दुख संयम और विवेक से,
क्रोध रूप दरकिनार करो।
सम्हलो पाते ही आहट,
मौन भाषा स्वीकार करो।
मुख खुले तो प्रेम शब्द हो,
बाहर नहीं अंगार करो।
क्रोध है असुर की संपदा,
प्रेम से लब श्रृंगार करो।
क्रोध सदा करता नुकसान,
प्रेम से सब पर वार करो।
क्रोध गिराये हर तरह से,
क्रोध का दूर विकार करो।
? ? ? —लक्ष्मी सिंह ? ☺