क्रोधक बसात
क्रोधक बसात
(मैथिली कविता छंदमुक्त)
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हम साँझ में कनि विलंब से घर अयलहुँ तेऽ,
मन क्रोध आओर उद्वेग से भरल छल।
हम एगो विद्वेष भरल कविता,
लिखऽ लेल सोचलहुँ।
लेकिन हम थकान से चूर चूर छलहुँ,
कनि काल के लेल,
हम ओछओना पर लेट गेलहुँ,
मन में अद्भूत छोभ भरल पंक्ति घुमि रहल छल।
ऊ उकठ अहंकारी केऽ शब्दवाण,
हमर मानस में टीस मारि रहल छल,
प्रत्युत्तर में उत्ताप जड़ित गरलयुक्त पाँति सोचि,
हम मनहि-मन आनंदित भेल जाएत छलहुँ।
हम सोचलहुँ जे हम क्रोधक बसात अवश्य लिखब,
आओर कनि देर बाद,
जब हम उठि केऽ लिखब तऽ,
ई कविता हमर क्रोध रूपी चित्त के चंगा करत।
जतेक बेर पढब ई काव्य,
ततेक बेर मन केऽ शांति भेटत हमरा,
हम तुरंत उठब आ रोस भरल कविता के मूर्त रूप दऽ देब,
मुदा हम तऽ नीन सऽ सुइत रहलहुँ ।
भोरे भोर नीन टूटल तेऽ,
घृणा आओर प्रतिशोध वला,
क्रोधक बसात के संगहि सँग,
कविता के प्लाट सेहो गाएब छल।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २५ /०२/ २०२२
फाल्गुन ,कृष्णपक्ष ,नवमी ,शुक्रवार
विक्रम संवत २०७८
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