क्रोटन
कल फिर मैनें अपने आंगन में
रोपा है एक नया क्रोटन
जो रोपने से पहले ही
मुरझा गया है.
जानते हो क्यों
जिस ममता और अपनत्व से सहेजकर
उसे अपने साथ ले आई थी रोपने
वो तुम्हारी उपेक्षा और तिरस्कार नहीं सह सका
कई बार अनकही भाषा
और चेहरे के भाव बहुत कुछ
बयां कर देते हैं
समझते तो हो न तुम,
तुमने चाहा मुझे एक सांचे में ढालना
जो तुमने गढ़ा है
कैसे ढल सकूंगी मैं उसमें
जबकि कभी तुमने आकार से परिचित कराया ही नहीं
क्या तुम जानते हो कि
कच्ची मिट्टी को सांचे में ढालते वक्त
हाथों को मटमैला और खुरदुरा होना पड़ता है
और उन खुरदुरी हथेलियों को
उसके आकार के अनुरूप चलना पड़ता है,
नहीं ढल सकी मैं तुम्हारे सांचे में
क्योंकि तुम्हारी हथेलियों ने मुझे आकार नहीं दिया
सिर्फ इसलिए कि,
मेरी ऊष्मा और नर्माहट से
अनभिज्ञ हो अब तक