क्रांति या आतंक
दिन सारे रहे हैं अधूरे
रात कभी हुई ही नहीं पूरी।
ब््राह्माँड का कौन सा क्षेत्र है यह
जहाँ हर चीज है आधी–अधूरी?
कौन सा नक्षत्र गुजर रहा है‚इस आकाश से?
कौन सा ग्रह कर रहा है उत्सर्जित
अनबूझ‚अनगढ़ प्रकाश–परमाणु
इस व्योम के पास से?
कौन सा चित्र झिलमिलाता है
स्वनवत कल्पनाओं में?
रेखा और रंग भरता है कौन
उसके मन के भावों में?
हिंसक आतंक क्राँति के नाम पर
विद्रोह और बगावत
जो बाँझ है
हो रहा है इस रक्त का धर्म।
निरंकुश लोभ‚अपरिभाीषत लालसा से युक्त
युवा युग एक हाथ में अनैतिकता
दूजे में उतावलापन लिए
हर कुछ हथिया लेने को बेताव
चाहता है सब
हाथ धरे हाथ किए बिना कर्म।
यह कौन सा अपूजित कण है माटी का
जहाँ हो रहा है दिक्भ्रमित हर कोई?
परिवर्तन के लिए प्रयोग
प्रयोग के लिए परिवर्तन
होता अनवरत रहेगा।
किन्तु‚ परिवर्तन प्रयोग से उपर रहेगा‚
हाँ जी‚शाश्वत रहेगा।
श्वास की आवा–जाही गुम होता रहा है
होता रहेगा।
कोई परीक्षीत परिणाम आतंक ने न
दिया है न देगा।
कफन के स्वयंवर में
बिंध देने से मछलियों के आँख।
या कफन ओढ़ने या बिछाने से
या मुठ्ठियाँ हवा में तेज दिखलाने से
होती नहीं क्राँति।
शासन के स्वभाव को
सार्वजनिक करना है क्राँित।
शासकों को आज भी पता नहीं
क्यों?
है भ्राँति।
द्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्दद्द
……अक्तूबर 30. 2005……अरूण प्रसाद