क्यों हो गए हम बड़े
अब कोई साथ देता नहीं
जबतक मैं पूछता नहीं किसी को
सब करते हैं नज़रंदाज़ मुझे
जबतक मैं पुकारता नहीं किसी को
हंसने से पहले इधर उधर देखता हूं
कोई है तो नहीं, हंसूगा तो क्या कहेगा वो
डरता हूं फैलाकर कहीं कोई अफवाह
कहीं मेरी बेइज्जती तो नहीं करवाएगा वो
लौटकर आता हूं जब काम से
कोई शाम को चाय के लिए नहीं पूछता
थक जाता हूं मैं पहले से ज़्यादा
लेकिन अब कोई आराम करने को नहीं पूछता
दोस्त भी अब रोज़ कहां मिलते हैं
दबे पड़े है वो भी जिम्मेदारियों के बोझ तले
निभा रहें है वो अपनी जिम्मेदारियां
कोशिश में लगे हैं बच्चे उनके अच्छे से पले
सपने देखने भी अब छूट गए है
जाने क्यों अपने ही रूठ गए है
बस कह नहीं पाते हम किसी से
अब हम भी धीरे धीरे टूट गए है
सोचता हूं क्यों हो गए हम बड़े
क्यों सीख गए हम ये दुनिया दारी
कहते हैं वही जो सुनना चाहता है कोई
जाने सच की कब आएगी अब बारी
नहीं रहा अब वो भोलापन,
वो मासूमियत भी बची नहीं हम में
खुशी के मौके भी खुशी नहीं देते
जाने खोए है हम किस गम में।