क्यों सिर्फ शहादत..
हम भावुक क्यों हो जाते हैं, सुनकर फौजी के नाम से।
हम गर्व नही क्यों कर पाते, फौजी के साहसी काम से।।
क्यों कष्ट करे माँ मेरी तू रो कर, तेरी चिंता भली नही।
तेरे दूध को पानी कर दे, अभी जन्मा ऐसा खली नही।।
हाँ जरा सा आहत हुआ था मैं, देख निशानी ले आया।
अपने बदन पर तेरा बेटा, आशीष वतन का ले आया।।
मैं जाते जाते कह ही गया था, लौट के वापस आऊंगा।
और यकीन कर मरने से पहले, एक नही दस मारूंगा।।
पिछली होली आ न सका, पर होली तो हम सबकी है।
फिर पकवान बना ले वही, ले मान वो होली अबकी है।।
तब आऊं तो तीज मनाना, अब आया तो मना दीवाली।
जब न आ पाऊं छुट्टी तो, रख धीरज मन मे खुशहाली।।
वापस जाऊं तेरी देहरी चुम के, देती विदा तू माँ मुस्काना।
जिन बेटे को मिली न छुट्टी, उनके लिए मीठा भिजवाना।।
सिर्फ शहीदी की नही कामना, हमें भी हक़ है जीने का।
चीर के छाती शौक हमें है, दुश्मन के लहू को पीने का।।
हम मरते ही नही, मारते भी हैं, इसकी पाई सिखलाई है।
दिल से कोमल, बदन से पत्थर, प्रकृति हमें आजमाई है।।
बात अलग की हम सैनिक, हमें जान का कोई मोह नही।
सिर्फ शहादत जनता चाहे, “चिद्रूप” ऐसा नही छोह कहीं।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०९/०३/२०२० )