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28 Apr 2018 · 1 min read

क्यों विषधर इस धरती पर

जीवन की बगिया में साथी , संग संग जीना मरना है ।
फूलों की घाटी में साथी , भर उमंग से जीना है ।
खेल खेल में इस जीवन के, तय हर जीत को करना है ।
जीवन रस का मधुर पान कर , हंस कर जीना मरना है ।

जीवन पथ की पथिक तुम्हारी , राह देखती अबलाए ।
जीवन पथ की राह निहारें , क्रंदन करती माताएँ ।
माताओं -बहनों की सीमा लांघ रही हैं विपदाएं ।
जीवन पथ को सरल बनाओ , निष्कलंक हों माताए ।

नागफनी क्यों है उपजाती , बंजर रेतीली धरती ।
कांटे से क्यों पटी हुई है , अति दुर्गम टेढ़ी धरती ।
जीवन पथ की राह निहारो , चूक न जाना राहों पर ।
फन फैलाये घूम रहे हैं क्यों? विषधर इस धरती पर ।

डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव , सीतापुर 27-04-1918

Language: Hindi
2 Likes · 564 Views
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