क्यों लड़ना और लड़ाना है
परवाना ये दीवाना है
लेकिन उसको जल जाना है
मकड़ी के जाले सी दुनिया
सबको इसमें फंस जाना है
गम इतने हैं आमजनों के
अब छलक रहा पैमाना है
जाने ध्यान कहाँ है भटका
क्यों लगता नहीं निशाना है
सब लोग यहाँ हैं इक जैसे
क्यों फिर शोर मचाना है
जब तक रहो प्यार से रह लो
क्यों लड़ना और लड़ाना है
रचना: बसंत कुमार शर्मा, जबलपुर