क्यों लिखती हूं कविता
क्यों लिखती हूं कविता
खुद को लेखकों की कतार में
देखना चहती हूं । बड़ी बड़ी बातें
लिख कर सबके दिलों में उतरना
चाहती हूं। मैंने भी देखा है
कलम का घोड़ा जब पन्ने पर सरपट
दोड़ा , देश और दुनियां की क्या बात हुई,अम्बर के तारों में लिपटा चांद सूरज को पीछे छोड़ा।
इसलिए तो मै भी उसकी सवारी करना चाहती हूं।
इसलिए कविता लिखती हूँ
किसी एक पर ही नहीं
हर किसी पर लिखती हूँ
उन बच्चों पर भी लिखती हूँ
जो पढ़ ना सके गरीबी की मार से
मां बाप को कोरोना चट गर गया,
बच्चों को अनाथ कर गया।
नेता, अभीनेता सब भाषण
दे देकर चुट्की भर दान देकर
अखबारों और टीवी चैनलों पर
छाए रहते हैं, केवल बड़ी बड़ी
डींगे हांकते है, करते धरते
कुछ भी नही हैं।
उन बच्चियों पर भी लिखती हूँ
जो शिकार हो जाती हैं
वहिशी दरिन्दों के शिकार की।
कुछ दे नहीं सकती किसी को
क्योंकि हमें कुछ मिला नहीं
कभी दुआ किया नहीं खुद के लिए
पर सबके लिए दुआ करती हूं।
माना कि परफेक्ट नहीं हूँ, अभी मैं
लिखना सीख रही हूं, करत करत
अभ्यास से मै भी जड़मति,
इक दिन तो थोड़े हद तक
सुजान हो जाऊंगी, मैं भी अपनी कलम का जादू दिखला पाऊंगी। फिर हो सकता है,
बड़ी-बड़ी बातें करने वाले नेताओं की
जो गरज -गरज वोटरों को लुभाने वाले,
लाखों वादे करने वाले ,जब सत्ता में आ जाते हैं, अपनी कसमें वादे भूल जाते हैं।
इन नेताओं को बेनकाब कर पाऊंगी।
इसकी कलई खोल कर दिखा पाऊंगी।
जो गरजते हैं बरसते नहीं ,जो भौंकते हैं वो काटते नहीं,आम आदमी को समझना चाहती हूं। भैया! तुम आम आदमी हो अमरूद या सेब आदमी नहीं,
आम को पहले हलके हलके सहलाते है फिर ढीला कर के चूस जाते हैं या काट कर प्लेट में बड़ी नजाकत से खा जाते हैं।
आम आदमी बने रहोगे
नेताओं, अभिनेताओं के मोह जाल में फंसे रहोगे! सब्जबाग दिखा- दिखा कर उनकी खूबसूरती और बड़ी बड़ी बातों में ही मकड़ी के जालों से फंसे रहोगे। जागो अब तो भारत वालों अपने अपने कर्तव्य पहचानों।
ये देश नही है मिल्कियत किसी की
ये तो है, ऋषियों, मनुष्य तपोभूमि और शहीदों की मात्रभूमि।
ऐसा है, वैसा है, ये कमी है, वो कमी है
जैसा मैं देखती-पढ़ती-सुनती हूँ
मैं भी वैसा ही लिखती हूँ
पर मैं जो भी लिखती हूँ, नही जनाब ! बड़ी बड़ी बातें नहीं करती हूं,
सब पूरी ईमानदारी से सही लिखती हूं।
सबसे ज्यादा मै अपनी ही आपबीती लिखती हूं। बड़ी बड़ी बातें नहीं छोटी-छोटी सी बातें लिखती हूं।
दीपाली कालरा
नई दिल्ली