क्यों राह कोई आसान चुनूं
मंजिल खुद अश्रु – सिक्त हुई ..
और शीतलता भी तिक्त हुई ..
फिर क्यों मैं मधुसम गान सुनूं
क्यों राह कोई आसान चुनूं??
पूजा था जिसको बन साधक..
बन गया स्वप्न खुद ही बाधक..
फिर क्यों उसके ही पथ पर,
मै बैठूं ख्वाब हज़ार गुनु..
क्यों राह कोई आसान चुनूं…
जब विपदा में अकेला छोड़ा था..
हर स्वप्न सलोना तोड़ा था..
अब जब यूं जीना सीख गई..
फिर क्यों जीवन दोधार बुनूं..
क्यों राह कोई आसान चुनूं..
जब कांटे खुद से फूल हुए
अश्रु खुद शूल से धूल हुए
जब आफत खुद गंतव्य हुई
फिर क्यों अब मैं आराम चुनूं..
क्यों राह कोई आसान चुनूं..!!