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15 Jul 2023 · 1 min read

क्यों मानव मानव को डसता

कैसा कलियुग जग में छाया,सत्य प्रेम नहि उर में बसता।
माया के चक्कर में देखो,मानव मानव को ही डसता।

चंचल माया ने है देखो,कैसा घातक जाल बिछाया।
चंद अर्थ के इन सिक्कों ने ,सकल जगत को है भरमाया।
प्रेम बना है पंथ लोभ का,कदम कदम पर स्वारथ रसता।
माया के चक्कर में देखो,मानव मानव को ही डसता।

पति पत्नी में प्रेम घटा है,पुत्र बाप से है लड़ता।
सर्प बने हैं साथी अपने,अर्थ लोभ में पारा चढ़ता।
सीधा साधा है मानव जो,चक्र व्यूह में इसके फंसता।
माया के चक्कर में देखो,मानव मानव को ही डसता।

रिश्ते नाते भटके निज पथ, लखते रिश्तों में भी माया।
बिना अर्थ के ऐसे छोड़ें,प्राण छोड़ते ज्यों यह काया।
कहता कविवर ओम जगत को, काल पाश सा कलियुग कसता।
माया के चक्कर में देखो,मानव मानव को ही डसता।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
शिक्षक व साहित्यकार

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 615 Views
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