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6 Jun 2023 · 1 min read

क्यों मानव तुम समझ न पाये

काट वनों को भवन बनाये
क्यों मानव तुम समझ न पाये,
ठंडी छाँव गँवाकर है अब
अपनी करनी पर पछताये ।

धूल धुंआ धुंध दानव जैसे
अपना पूरा मुख फैलाये,
खोये हुए जो निज कर्म में
निरीह जन को ग्रास बनाये ।

खेत उजाड़े पेड़ उखाड़े
कूप सरोवर सब पटवाये,
रूठी सारी बहती नदियाँ
उनके तीरे घर बनवाये ।

चारों ओर बनीं इमारतें
लगता मानों मुंह चिढ़ाये,
उष्ण शीत का नहीं संतुलन
कैसे जीवन है बच पाये ।

डॉ रीता सिंह
चन्दौसी ,सम्भल

Language: Hindi
1 Like · 338 Views
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