क्यों भावनाएं भड़काते हो?
क्यों भावनाएं भड़काते हो,जिसको देखो लड़वाते हो
क्या भावनाओं की कद्र नहीं,ये तो मानव धर्म नहीं
क्यों ऊटपटांग वतयाते हो, श्रद्धा को ठेस लगाते हो
कभी शिव शंकर, कभी नवी को, बुरा भला कह जाते हो?
मानव समाज में, धर्म के नाम पर, क्यों द़ेष बढ़ाते हो
ये तो मानव का कर्म नहीं, क्या जानते धर्म मर्म नहीं
क्यों गले कटवाते हो, समाज में नफ़रत फैलाते हो
क्या मरने बाला इंसान नहीं,
क्या खुदा की उसमें जान नहीं?
क्यों इंसान को तुम मरवाते हो,
ये कौनसा धर्म निभाते हो?
क्या ईश्वर अल्लाह भगवान नहीं?,
क्या नाम अलग वे एक नहीं?
क्या इसका तुमको भान नहीं?
क्यों नाम पर तुम लड़ जाते हो,?
एक है मालिक दुनिया का, क्या झूंठा अर्थ बताते हो?
तुम कहते हो एक मालिक ने दुनिया सारी बनाई है
पत्ता पत्ता ज़र्रा ज़र्रा सारी उसकी खुदाई है
क्या गैर मुस्लिम नहीं खुदा का वंदा?
नाम अलग हैं मत बन अंधा
क्यों हिंसा फैलाते हो, दुनिया में जंग कराते हो
मानव, मानवता, ईश्वर अल्लाह एक है वंदे!!!
फिर क्यों इसे लजाते हो?