क्यों न आएं?
चुप – चुप क्यों हो?
छिपा- छिपी क्यों हैं?
प्यार से दिल दो न!
नफा -नुकसान क्यों है?
आज न जाने तुम्हें क्या हो गया है?
मोबाइल छोड़कर कहां छिप गए हो?
एक बार भी तुमने मुझे नहीं खोजा है
तुमसे बात किए बिना चैन नहीं आती है।
दिन बीता, रात भी बीता, भोर होने वाली है
न तो तुम्हारा कालर – ट्यून बजा
न तो तुम्हारा ही रिंग बजा
न तो हाय- हल्लो हुआ।
मैं तो सोच रही थी
कोई सरप्राईज दोगे
पीछे से आकर आंखे बंद कर दोगे
फिर बांहों में ले लोगे।
मैंने कई – कई बार मोबाइल उठाया
मिस काल देखा, ई मेल देखा
वाट्सअप भी देखा
कांटेक्ट लिस्ट भी टच किया।
सुना: “अपने जिसे फोन किया है
वह उत्तर नहीं दे रहा है,
इस रास्ते के सारे नेटवर्क व्यस्त हैं/
नोट रिचेबल है या स्विच ऑफ है,”
कृपया थोड़ी देर बाद बात करें।
लेकिन हर बार तुमने मेरा दिल दुखाया
मेरे रिंग के ग्रीन बटन को स्विप भी नही किया
मेरे मन का माल पुआ रखा रह गया
गुलाल न मैंने लगाया, न तुमने आकार लगाया।
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स्वरचित और मौलिक
घनश्याम पोद्दार
मुंगेर