क्यों ना हम बच्चे बन जाए
बच्चे का होता सरल, सम दर्शन सा बोध
सांसारिक संबंध से, रहता सदा अबोध
रहता सदा अबोध, मस्त होकर मस्ती में
मौज मनाता रोज, मग्न हो निज बस्ती में
कह कान्हा कविराय, बड़े ये मन के सच्चे
क्यों ना सब बन जाय, सरल भोले से बच्चे ।।
बच्चे का होता सरल, सम दर्शन सा बोध
सांसारिक संबंध से, रहता सदा अबोध
रहता सदा अबोध, मस्त होकर मस्ती में
मौज मनाता रोज, मग्न हो निज बस्ती में
कह कान्हा कविराय, बड़े ये मन के सच्चे
क्यों ना सब बन जाय, सरल भोले से बच्चे ।।