क्यों दर्द अकेले ढोते हैं
मदहोशी में बिखरकर चांदनी खिलती है
जब कोई रोशनी शम्मा से जलती है
जब हकीकत सामने चलती है
जब नियती से शामें ढलती है
जब जान किसी बिन मचलती है
जब उस पगली से दूरी खलती है
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क्यों आंखें खुलीं यादों में खोये होते हैं
जमाने से खुदको छुपा तन्हाइयों में रोते हैं
एक पल जीना था मुश्किल फिरभी वो चैन से सोते हैं
जब मुहब्बत की थी दोनों ने क्यों दर्द अकेले ढोते हैं