क्यों तुम दूर चली गई
देकर दर्द ज़माने का
क्यों तुम दूर चली गई
अपना कहने वाली थी तुम
क्यों फिर रूठ के तुम चली गई
अपने यादों की बन्दिश में
मुझे क्यों छोड़ के तुम चली गई
क्यों मंज़िल की अधूरी राह में
तन्हा छोड़ के तुम चली गई
बन्द आँखों में सपने देकर
तुम क्यों चली गई
क्यों पुरवाई की शीतलता का
एहसास देकर फिर तुम चली गई