क्यों तुम दूर खड़े हो
*** क्यों तुम दूर खड़े हो ****
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हट कर क्यों तुम दूर खड़े हो,
आखिर किस बात पर अड़े हो।
लगते हो खुद से खफ़ा खफ़ा,
किस से किस बात पर लड़े हो।
देख कर तुम्हे लगता जैसे,
पानी बिना खाली घड़े हों।
मंजिल न कोई दर ठिकाना,
राहों में आवारा पड़े हो।
चमकते हो सभी में ऐसे,
अँगूठी में हीरे जड़े हों।
मनसीरत आँखों का तारा,
बैठे क्यों पुष्प से झड़े हो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)