क्यों चाँद आज उदास है….
क्यों चाँद आज उदास है !
पीली सी पड़ी उजास है !
सहमा सा है स्तब्ध गगन,
दिखता न कहीं हुलास है।
हतप्रभ निहारती चाँदनी,
रुक गया धरा का लास है।
प्रकृति-नटी हो अनमनी,
ले रही गहन उच्छ्वास है।
खोई-खोई सी है यामिनी,
बुझा-बुझा अधर पे हास है।
सिमटे हैं खुद में सितारे,
ठिठकी सी खड़ी बतास है।
क्यों परिवर्तन आज यह?
जरूर बात तो कोई खास है।
दुख में हों प्रियवर अगर,
कुछ भी न आता रास है।
घन में चपला सी चमकती,
सुख की झीनी सी आस है।
नियति भी ‘सीमा’ में बँधी,
वक्त भी तो उसी का दास है।
— डॉ.सीमा अग्रवाल —