क्यों इश्क करना महंगा पड़ा
क्यों इश्क करना उसे महंगा पड़ा
फिर निगाहों का कड़ा पहरा पड़ा
यार मेरा हो गया जो बाबला
जब शरारत की तभी डण्डा पड़ा
वो समझता क्यों नहीं समझाने से
इसलिए किस्मत पे अब ताला पड़ा
प्यार मेरा जो हमेशा से रहा
भूल अपना आज जो डूबा पड़ा
मैं बना सजना लगा लूँगी गले
क्योंकि पीछे आज ज्यादा पड़ा
जब चढ़ा उसको इश्क का फिर ज्वर
इसलिए फिर आज वो औंधा पड़ा
साथ उसके ही रहूँगी आज मैं
क्योंकि मेरे साथ ही पाला पड़ा
डॉ मधु त्रिवेदी