क्योंकि_अब_लोग_तार_नही_लिखते
प्रेम की रिमझिम बारिश में टप्प से पहली बूंद लेटर बॉक्स के डिब्बे पे पड़ी, आहिस्ते-आहिस्ते बूंदो ने डिब्बे को परत-दर-परत भिगो दिया…मगर कहते है न- ई प्रेम नगरिया है जनाब, हिया मन ही विरह में जलता है, मन ही प्रेम बारिश में आनन्दित हो झूमता है..
रूंधे गले और दबे मन से बोली “यहाँ क्यों आई हो, यहाँ अब कोई नही आता,छोटे डिब्बे ने हम बड़े डिब्बों की ख़ुराक़ छीन ली,कभी नित नए व्यंजन मिलते थे,कभी पाती में मीठा आलिंगन तो कभी कड़वी जुदाई, इस पाती ने कइयों के चेहरों को रोशन किया है, बेधड़क, बेअदब से भी यहां सब कुछ मिलता था। रात दिन,आँधी तूफान बिना किसी डर के मैं खड़ा रहता था बस एक अजनबी की इतंजार में जो बड़ी ही उम्मीदों से अपना संदेश मेरे हवाले कर जाता था ,तुम्हें पता मैं भी उसे ख़ूब सँभाल के रखता था जब तक एक टोपी वाला आदमी इसे यहाँ से ले नही जाता था ।
अब आज तुम यहाँ आई , अब मैं, मैं नही रहा, मैं खत में केवल सन्देश ही नही, बल्कि साथी का विरह और प्रेम भरा मन भी भेजता था, लेकिन डिजिटल दुनिया मे तन की मारा-मारी है, इसीलिये मेंरे पास अब कोई ख़त नही हैं, सब कुछ सेकंडों में होता हैं,अब मैं पुराना हो गया, खोने को कुछ नही ,जाओ वापस लौट जाओ अब लोग तार नही लिखते, क्योकि अब लोग मन की नही लिखते।