क्योंकि वह एक सिर्फ सपना था
सबकी तरहां मैं भी आज,
हो चुका हूँ तरुण,
इसी के साथ मेरी जिम्मेदारी भी,
हो चुकी है प्रौढ़।
जब मुझको अहसास हुआ इस अवस्था का,
सबकी तरह मैं भी बुनने लगा हूँ सपनें,
मेरी इच्छा है कि इस घर में,
संस्कारों का दीपक सदा जलता रहे।
मेरी तरह सभी प्राणी,
इस घर का ख्याल रखें,
सभी अनुशासित और ईमानदारी से,
अपना अपना कर्त्तव्य निभायें।
यह है मेरा अरमान,मेरा सपना,
मेरे सपनों का एक संसार,
जो तरूणाई में सबकी तरहां,
देखा था मैंने कभी रातों में।
मगर अब सुबह हो चुकी है,
और जाग चुका हूँ मैं भी,
मगर मुझको नहीं मिला वह,
जो देखा है मैंने सपनें में।
क्योंकि वह एक सपना था, सिर्फ सपना।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)