क्योंकि मै तो बस निक्कम्मी हूँ…..
क्योंकि मै तो बस निक्कम्मी हूँ…..
बच्चों को अपने हाथों का बना खिलाती हूँ
स्कूल से आने पर घर में ही मिल जाती हूँ
सारे कपड़े एक – एक कर करीने से
उनकी अलमारियों में लगाती हूँ
क्योंकि मैं तो बस निक्कम्मी हूँ…
पुराने खान – पान वो भूल ना जायें
सब बना कर उनको याद दिलाती हूँ
उनकी नींद से सोती हूँ
उन्हीं की नींद से उठ जाती हूँ
क्योंकि मै तो बस निक्कम्मी हूँ…
कभी मिट्टी से कुछ गढ़ती हूँ
कभी लेखनी से कुछ रचती हूँ
कभी कशीदाकारी कर लेती हूँ
कभी अचार बरनी में भरती हूँ
क्योंकि मै तो बस निक्कम्मी हूँ…
किसी क्लब – किटी में नही जाती हूँ
लेकिन अपनों के लिए समय निकालती हूँ
समय कम पड़ जाता है इन सब कामों में
इसीलिए प्रभु से दो – चार घंटे और माँगती हूँ
क्योंकि मै तो बस निक्कम्मी हूँ…
अपने छूटे काम को करने के लिए
फिर से डट कर खड़ी हूँ
उन सालों का अंतराल भरने को
जी जान से अड़ी हूँ
क्योंकि मै तो बस निक्कम्मी हूँ…
नित नयी उपलब्धियां जोड़ रही हूँ जीवन में
बिना बैलों की गाड़ी खिंच रही हूँ लगन में
अकेले तो अच्छे – अच्छे भी थक जाते हैं
मैंं तो जम कर खड़ी हूँ सृजन के अगन में
क्योंकि मै तो बस निक्कम्मी हूँ…
रोज़ करती नये आविष्कार हूँ
नई सोच को देती आकार हूँ
अपनी सोच को करती साकार हूँ
हर क्षण बदलती अपना अवतार हूँ
क्योंकि मैं तो बस निक्कम्मी हूँ…
आज – कल प्रतीभा का कोई काम नही
इन्हे पता नही प्रतीभा खास है आम नही
हम कलाकारों का तो यही काम है
गढ़ना रोज़ नया आयाम है
क्योंकि मैं तो बस निक्कम्मी हूँ…
इसको सब कहाँ समझते हैं
बहुत कम के गले हम उतरते हैं
मुझ जैसी मायें भी कम मिलती हैं
अपना बेशकीमती करियर भी
ताक पर रखती हैं
क्योंकि मैं तो बस निक्कम्मी हूँ…
तुम अपना फ्रस्टेशन निकालने के लिए
मुझे निक्कम्मा कह सकते हो
इतनी काबिल होने पर भी
मुझ जितना क्या तुम सह सकते हो ?
इतने सब के बावजूद अगर मैं निक्कम्मी हूँ
तो अच्छा है मेरा निक्कम्मा होना
मुझे नही है अपना निक्कम्मापन खोना
क्या करूँ मैं तो बस ऐसी हूँ
क्योंकि मैं तो बस निक्कम्मी हूँ ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 18/10/2019 )