क्योंकि…मैं लेखक हूँ।
मेरी कलम से…..
मैं लेखक हूँ, कवि हूँ, शायर हूँ।
मैं लिखता हूँ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए,
मन में छिपे कुछ मौन शब्दों को कहने के लिए।
मैं लिखता हूँ खराब व्यवस्था पर,
सड़कों गलियों की हालत खस्ता पर।
समाज में फैले भ्रष्टाचार पर,
लुप्त हो रहे रीतिरिवाजों और संस्कार पर।
क्योंकि….मैं लेखक हूँ, कवि हूँ, शायर हूँ।।।।
मैं लिखता हूँ नारी पर हो रहे अत्याचार पर,
वतन-ऐ-आबरू पर सैनिक की जां निसार पर।
चारों तरफ फैली नफरत की आग,
और हर रोज़ हो रहे नर संहार पर।
क्योंकि…. मैं लेखक हूँ, कवि हूँ, शायर हूँ।।।।
मैं लिखता हूँ लड़का लड़की के भेद पर,
सैनिकों की शहादत पर सरकार के खेद पर।
तूफान कभी ज़लज़ले और बाढ़ पर,
बंजर जमीं गर्म रेत और न बरसने वाले मेघ पर।
क्योंकि….मैं लेखक हूँ, कवि हूँ, शायर हूँ।।।।
बस लिखता हूँ बेवाक लिखता हूँ,
सच्चाई के लिए खटकता हूँ।
परवाह नहीं फिर भी फ़रेबी जमाने की,
सबके लिए लिखते हुए “गुप्ता”,
कोशिश करता है समझाने की।।
क्योंकि मैं लेखक हूँ, कवि हूँ, शायर हूँ।।।।
संजय गुप्ता।
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