क्योंकि मैं किसान हूँ।
धरती की संतान हूँ
देश का अभिमान हूँ
भारत की मैं शान हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
दिन हो या रात हो
या दोपहर की ताप हो।
ग्रीष्म या बरसात हो
या पौष माघ की रात हो।
संध्या या प्रभात हो।
करता नहीं आराम हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ।
खरा पसीना खरी मेहनत
थोड़ी कमाई बड़ी मेहनत।
कम उपज और अधिक मेहनत
कोड़ी के दाम जाती मेहनत।
रात और दिन थकाती मेहनत
फिर भी कभी ना जपता हूँ।
क्योंकि मैं किसान हूँ।
जब आषाढ़ का महीना आता
उमड़- घुमड़ कर मेघ लाता।
मैं महाजन के घर जाता
नई फसल उगाने हेतु
और थोड़ा सा ऋण लाता
जिसे जीवन भर चुका ता हूँँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
नए जमाने का दौर आया
नया यंत्र और साधन लाया
नई औषधि नया रसायन
नए खाद व बीज लाया
जिन्हें उपयोग में लाने हेतु
बहुत खर्च उठाता हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
छोटा सा है स्वप्न मेरा
छोटा सा है घर मेरा
छोटा सा है गाँव मेरा
और छोटा सा खेत मेरा
इस छोटे से खेत में
थोड़ी- सी फसल उगाता हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
हरियाली की चादर ओढ़े
जब नई फसल लहर आती है
ठण्डी- ठण्डी पवन के झोंके
मन अन्तर छू जाती है
इस चादर को ओढ़ कर
मैं भी सो जाना चाहता हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
भोर काल शबनम की बूंदे
मोती की लड़ियाँ बनाती है
चमकीली सी सुन्दर लड़ियाँ
मन में चमक जगाती है
इन लड़ियों के मोल से
सपनों में कर्ज चुका ता हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
शाम ढली अब रात आई
पौष-माघ की रात आई
ठिठुर रहा सारा बदन है
सर्द हवा की रात आई
ठिठुरन भरी इन रातों में भी
करता सिंचाई का काम हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
ऋतुराज का हुआ आगमन
बसंती हवाएँ चलने लगी है
सुनहरी चुनर ओढ़ फसल भी
सजने और सँवरने लगी है
सुनहरे सपने की दुनिया में
मैं भी खो जाना चाहता हूँ
क्योंकि मैं किसान हँ
शीतकाल जब मावठा आता
मेरा मन बहुत घबराता
कभी ओले कभी पाला लाता
आधी उपज को नष्ट कर जाता
बची हुई थोड़ी सी ऊपर जैसे
अपना काम चलाता हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
किसी वर्ष सुखा होता तो
किसी वर्ष वर्षा अधिक
कभी शीत की ठण्डक भारी
कभी किट की मार अधिक
प्रकृति के इस चक्रव्यूह में
मैं अभिमन्यु बन जाता हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
संघर्ष भरा है जीवन मेरा
जीवन में ना कोई रंग है
डर डर के मर मर के जीता
मेरा हाथ हमेशा तंग है
बिना अपराध के में सूली पर
चढ़ने को मजबूर हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
सुनो देश के ठेकेदारों
सुनो अरे ये सत्ताधारी
मेरी भूजा की शक्ति पर
पल रही है जनता सारी
कर्तव्य ज्ञान है मुझको अपना
करता नहीं अभिमान हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
मैं ही चलाता अर्थव्यवस्था
व्यापार में ही चलाता हूँ
देश के सारे कारखानों को
कच्चा माल पहुँचाता हूँ
बिगड़ ना जाए सारी व्यवस्था
कि करता नहीं विश्राम हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ
कृषि का जो काम है सारा
मुझको अपना काम है प्यारा
फसल उगाते आया हूँ मैं
फसल उगाता जाऊंगा
जब तक कि मैं जीवित रहूंगा
भुखों की क्षुधा मिटाउँगा
प्रण से कभी न टलता हूँ
क्योंकि मैं किसान हूँ।
-विष्णु प्रसाद’पाँचोटिया’
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