क्योंकि,मैं जो हूँ स्वतः हूँ..!
क्योंकि,मैं जो हूँ स्वतः हूँ..!
स्वयं रचता हूँ स्वयं पढता हूँ,
आप पढ़ो तो ठीक है..
वरना खुद ही पाठक हूँ,
क्योकि, मैं जो हूँ स्वतः हूँ।
खुद गढ़ता हूँ शब्दो को,कुम्हार सा,
पिरोता हूँ शब्दो को,मोतियों की माला सा.
आप महसूस करो तो ठीक है..
वरना खुद की कृति से बेसुध सा हो जाता हूँ,
क्योकि, मैं जो हूँ स्वतः हूँ।
खुद की कल्पना का आकाश बनाता हूँ,
खुद ही नदी सा बहता जाता हूँ,अविरल!
आप महसूस करो या ना करो..
मै मदहोश सा डूब जाता हूँ,
क्योकि मैं जो हूँ स्वतः हूँ।
आप अचंभित सा हो जाते हो,
विचलन में डगमगाते हो..
अविश्वास की डोर जो पकड़े हो,
आत्मविश्वास खून सा दौड़ता मेरे रगों में…
खुद का विश्वास खुद जगाता हूँ,
क्योकि मैं जो हूँ स्वतः हूँ…..