क्यूं बैठे हो?
ये सन्नाटा क्यों पसरा है?
क्यूं मौन शिला से बैठे हो?
आंखों में बादल छाए हैं
क्यूं शून्य गगन में तकते हो?
रेशम जैसे बालों को तुम ,
उलझा कर क्यूं बैठे हो?
अरुण लालिमा से ओठो को,
काले कर क्यूं बैठे हो ?
चांदनी जैसे चेहरे पर ,
किस केतु की छाया है ?
ये अंधकार क्यों पसरा है,
ये किन दुष्टो की माया है?
जीवन के उषाकाल को तुम,
क्यूं सांझ बनाये बैठे हो?
ये सन्नाटा क्यों पसरा है?
क्यूं मौन शिला से बैठे हो?