क्यूँ मेरे हमसफ़र नहीं आते
ज़िद है कैसी इधर नहीं आते
क्यूँ मेरे हमसफ़र नहीं आते
क्या करें उस जगह ठहरकर हम
जिस जगह वो नज़र नहीं आते
उनके वादे पे क्या भरोसा हो
बोल जाते हैं पर नहीं आते
रोज़ मिलते थे बात होती थी
अब वो शामो-सहर नहीं आते
बस मुक़द्दर से ये शिकायत है
ग़म कभी मुख़्तसर नहीं आते
अब दुआ की हमें ज़रूरत है
अब दवा के असर नहीं आते
उनको ‘भूला’ जहान कहता जो
लौटकर शाम घर नहीं आते
हर जगह बन गये मकां ही मकां
अब नज़र में शजर नहीं आते
उनसे ‘आनन्द’ गर मुहब्बत है
उनसे क्यों बोलकर नहीं आते
– डॉ आनन्द किशोर