क्यूँ माँ के दूध को लज्जित किया ??
क्यूँ माँ के दूध को लज्जित किया ?
// दिनेश एल० “जैहिंद”
खींच कर तूने स्त्री के आँचल को,,
क्यूँ माँ के दूध को लज्जित किया ?
खल-क्रीड़ा कर नारी-अस्मत संग,,
क्यूँ माँ की ममता को खंडित किया ??
क्यूँ सद्भावना से तेरी दुश्मनी,,
क्यूँ कुविचार को अंगीकार किया ?
क्यूँ खलकामी, कापुरूष बनकर,,
इस पुरुष-कौम को शर्मसार किया ??
तूने त्यागकर अपनी गरिमा को,,
हर बार असहनीय कुकर्म किया |
कभी अकेले तो कभी दस-बीस,,
दर्दनाक और अक्षुण्ण मर्ज दिया ||
चीड़कर मानवता की छाती,,
तूने कैसा अक्षम्य पाप किया !
तूने एकान्त में बैठ गंग तिरे,,
कभी स्वयम् पर संताप किया ??
तू वीर, बहादुर, बलवान पुरुष,,
तूने इस जगत में बड़ नाम किया |
क्यूँ लम्पट, नीच, अधम, पापी,,
निज पौरुषता को बदनाम किया ??
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दिनेश एल० “जैहिंद”
12. 09. 2018