क्यूँ नहीं दिल पर मेरे डाका पड़ा
देखिए कुछ हज़ल सी हुई क्या?
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इश्क़ तो यारो मुझे मँहगा पड़ा
वक़्ते वस्लत मैं जो पीकर था पड़ा
देख उसको, क्या हुआ इक चश्म ख़म
क्या कहें किस दर्ज़े का चाटा पड़ा
भूत का मैंने लिया जैसे ही नाम
वह मुआ सूरत में उसकी आ पड़ा
कोई बावर्ची नहीं थे जबके वे
नाम फिर भी मुल्ला दो प्याज़ा पड़ा
था परीशाँ रूसियों से इसलिए
सर जो मुड़वाया तभी ओला पड़ा
चाहता ग़ाफ़िल हूँ शिद्दत से तो, पर
क्यूँ नहीं दिल पर मेरे डाका पड़ा
-‘ग़ाफ़िल’