क्यूँ गलत को कहा सही अब तो
क्यूँ गलत को कहा सही अब तो
जां का दुश्मन बना यही अब तो
ज़िन्दगी एक साँस पर है टीकी
जी का जंजाल ये बनी अब तो
खेल आँखों से खेलने वालों
कब मिटेगी ये तश्नगी अब तो
एक ऐसा भी दौर देखा है
जब मुहब्बत थी बन्दगी अब तो
फिर से’ अब लौट कर हूँ आया मैं
देखने को न ज़िन्दगी अब तो
हर तरफ खौफ़ के ही बादल है
आदमी आदमी नहीं अब तो
दिल में जज़्बात ले के बैठा हूँ
धड़कने दिल में न बची अब तो
कौन समझा बयाने जज़्बाती
हर तरफ बस है दिल्लगी अब तो
जज़्बाती