क्यूँ आता है बुढ़ापा
मेरी कलम से…..!!
बुढ़ापे का दर्द वही जान सकता है जिसपर बीती हो। इसी को मैंने कलम से पन्नों पर उतारने की एक कोशिश की है।
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न जाने क्यूँ आ जाता है बुढ़ापा,
कितने गम ले आता है बुढापा।
कितनी हसरतों और अरमानों को,
एक पल में मिटा जाता है बुढ़ापा।।
ईंट पत्थर जोड़कर बनाया जो
आशियाना,
उसके बरामदे के एक कोने में,
सिमटकर रह जाता है बुढ़ापा।
फिर उसी सपनों के महल में,
कैद होकर रह जाता है बुढ़ापा।।
ताउम्र जिनकी खुशियों के लिए दौड़ते रहे,
उनको ही पराया बना जाता है बुढ़ापा।
लाख बंदिशों में बंधकर अक्सर,
जिंदगी की जंग हार जाता है बुढ़ापा।।
भरे पूरे परिवार के होते हुए भी,
अक्सर अकेला रह जाता है बुढ़ापा।
कृशकाया और रोगों से घिरकर,
दम तोड़कर चला जाता है बुढ़ापा।।
संदेश-: अपने माता-पिता को वही प्यार दें जो हमें वो अब तक दे रहे हैं और उनको उचित सम्मान दें जिसके वो हकदार हैं।। सुबह उठकर उनके पांव न छू सको तो कोई बात नहीं, मगर उनको दो मीठे बोल तो बोलिये, कुछ देर उनके पास बैठ उनका हाल तो जानिए।
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रचना एवं प्रस्तुति,
कवि/पत्रकार संजय गुप्ता।