क्युं आँख तेरी भर आयी है..
क्युं होंठों पर है ख़ामोशी, क्युं मायूसी सी छाई है,
बोलो न ज़रा कुछ बोलो न, क्युं आँख तेरी भर आयी है?
किस सोच में खोये बैठे हो, किस याद में डूबे हो आख़िर
क्या दिल पे लगी है चोट कोई, या सीने में उठी तन्हाई है?
बोलो न ज़रा कुछ बोलो न, क्युं आँख तेरी भर आयी है?
क्या दिल को किसी ने तोड़ा है, क्या छोड़ा है किसी ने राहों में
या झटका है उसी के हांथो ने, महफूज़ थी तुम जिन बाहों में
आंखों में क्युं लाचारी है, क्युं खिलती कली मुरझाई है?
बोलो न ज़रा कुछ बोलो न, क्युं आँख तेरी भर आयी है?
-आकाश त्रिपाठी (जानू)