क्या ख़ाक ढूंढे
हम तुम्हें ढूंढे या तुम्हारे दिए गुलाब ढूंढें।
या तुम्हारे बेतरतीब सवालों के जवाब ढूंढें।
तुमको और तुम्हारी दी हुई चीज़ों को ढूंढने में,
हम बर्बाद हो गए हैं अब क्या ख़ाक ढूढें।
तुम जब तुम थे तो कोई बात नहीं थी।
तुम जब बदले ये छोटी बात नहीं थी।
घना बादल है आसमां में हर तरफ अबतो
फिर कैसे तुम्हारे जैसा आफ़ताब ढूंढें।
हम बर्बाद हो गए हैं अब क्या ख़ाक ढूढें।
तुम बदले अचानक से मौसम की तरह।
खुशी के ठीक बाद बड़े गम की तरह।
तुम्हारी बदल ने मुझे बदला है इसकदर,
तुम्हारे बेवफा होने में क्या इत्तेफ़ाक ढूंढे।
हम बर्बाद हो गए हैं अब क्या ख़ाक ढूढें।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी