‘क्या हो गया मेरे प्यारे देश को’
क्या हो गया मेरे प्यारे देश को
लगता है ये बीमार हो गया
लग गयी इसको किसी की बुरी नज़र
ये इसके अपनों के लिए ही
अब एक बोझ एक भार हो गया
क्या हो गया मेरे प्यारे देश को
लगता है ये बीमार हो गया
देश बनता है देशवासियों से
यही देशवासियों का एक धड़ा
अति स्वछँदता का शिकार हो गया
स्वछँदता इतनी की देश जाये भाड़ में
विकसित सोच तो है सिर्फ हमारी ही
हम नही है किसी और भी जुगाड़ में
हमें अपने विचारों की है पूरी आज़ादी
जंग हमारी रहेगी तब तक जारी
जब तक नही होती इसकी बर्बादी
हमें कोई क्यों रोक रहा है
क्यों कोई टोक रहा है
हमें तोड़ने दो जो हमें नहीं है पसंद
छाती पीट हो-हल्ला करने दो
वरना हम तो करेंगे जंग
ये विद्रोही छिछोरा स्वछन्द जयचंद धड़ा,
कैसे हो गया इतना देश से भी बड़ा
जो इनको दे रहे अपनी
खुली और मौन स्वीकृति
वो भी कितने हैं निर्लज्ज नीच,
देश से भी ज़्यादा प्यारी उन्हें है कुर्सी
ना जाने कैसा इनको
‘कुर्सी’ का खुमार हो गया
क्या हो गया मेरे प्यारे देश को
लगता है ये बीमार हो गया
पर ये भी सुन ले ये स्वछंद जयचंद धड़ा
यूँ ही नही रहने देंगे हम अपने देश को बीमार
खूब सींचा है इसको अपना लहू देकर वीरों ने
आज़ाद कराया ‘भारत माँ’ को
जो बंधी थी गुलामी की जंज़ीरों में
स्वछँदता के दीवाने जो आतुर हैं
इसको क्षति पहुचाने में
याद रखें मिट गयी हस्तियां बड़ी-बड़ी,
रह गयी उनकी हसरत हसरत ही
इस देश को झुकाने में
देश हमें है ये जान से भी प्यारा,
नासमझों की ये बेबस और लाचार हो गया
कर देंगे इसको फिर से
ठीक-ठाक,भला-चंगा ,तन्दरूस्त
जो ये देश मेरा बीमार हो गया।।
©®Manjul Manocha@@