क्या हुआ गर?
क्या हुआ गर?
जो साथ न तेरा कभी मिला
क्यूँ इतनी सी बात पर हो मुझे गिला
क्या हुआ गर?
जो साथ चल न पाए हम कभी,
कहाँ साथ साथ चल पाते हैं यहाँ सभी,
क्या हुआ गर?
जो मैं बादलों को ढूँढता रह गया यहीं कहीं
और बादल बरस गया और कहीं
क्या हुआ गर?
जो तरसता रह गया कोई तेरे लिए,
शायद तू बना ही नही था उसके लिए
क्या हुआ गर?
जो पा ना सके कभी तुझे,
पर जानता हूँ भूल न पायी होगी तू भी मुझे,
क्या हुआ गर,
जो चाहा वो कभी मिल न पाया,
जो पाया वो ही है कुल सरमाया,
पाना-होना कुछ ख़ास फ़र्क़ नही
बस मन का भ्रम है कहीं
थोड़ा कम या ज़्यादा होगा,
पर होना हमेशा पाने से कहीं बेहतर होगा
पाने से कहीं बेहतर होगा……