क्या हिन्दी उत्सवधर्मिता का विषय नहीं?
क्या हिन्दी उत्सवधर्मिता का विषय नहीं?
आज राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस.) दिवस है | आप सभी को इस दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ | चूँकि 14 सितम्बर यानि हिन्दी दिवस के बाद देश के लिये सबसे महत्वपूर्ण दिवस आज 24 सितम्बर को आया है तो अचानक हिन्दी दिवस की टीस फिर से हृदय में जागृत हो गई | वैसे तो हमारे देश में पर्व-त्योहार और उत्सवों की कोई कमी नहीं है, क्योंकि हमारा देश भारत तो है ही अनेकता में एकता का प्रतीक | उसके बाद भी हमने हमारी भारतीय संस्कृति में कई अंग्रेज़ी दिवसों को इतना महत्वपूर्ण स्थान दे रखा है कि हमारे देश लगभग प्रत्येक दिन कोई न कोई दिवस तो मनाया ही जाता है | हमारे यहाँ के युवा तो वैलेन्टाइन वीक के पखबाड़े के सातों दिन उत्सव की तरह मनाते हैं | जबकि ये सातो दिवस अंग्रेजियत के प्रतीक हैं | देश के सभी युवाओं को यह तो पता है कि 14 फरबरी यानि वैलेन्टाइन डे लेकिन आज इसी हिन्द में रहने वाला युवा यह नहीं जानता कि 14 सितम्बर यानि हिन्दी दिवस यानि हमारी मातृभाषा का दिन, जिस भाषा में हमने जन्म लिया उसका दिन | लेकिन पता कैसे होगा युवाओं को तो अंग्रेज़ियत अधिक पसंद है और ये वैलेन्टाइन भी तो अंग्रेज़ियत का ही प्रतीक है | हम जिस दिन को हैप्पी बर्थडे बोलकर मोमबत्तियाँ बुझाकर उत्सव मनाते हैं वह भी तो अंग्रेज़ियत का प्रतीक है | इस देश में तो दीप जलाये जाते हैं, रोशनी फैलाई जाती है, लेकिन ये मोमबत्ती फूँककर अँधेरा फैलाने की न जाने हमने कौन सी संस्कृति अपना ली?
जब बात आती है ‘हिन्दी दिवस’ की तो आज के युवक और युवतियों की दुर्दशा देखकर हृदय को बड़ा दुःख होता है कि हममें से कोई हिन्दी दिवस को मनाना ही नहीं चाहता | आज के युवा समझते हैं कि ‘हिन्दी’ कोई उत्सव का विषय नहीं, जिसकी शुभकामनाएँ दी जायें | आज के युवाओं में न जाने क्यों यह विचारधारा पनप चुकी है कि ‘हिन्दी’ उत्सवधर्मिता का विषय नहीं है | विश्व की सर्वाधिक प्राञ्जल, शाश्वत, गौरवमयी और महत्वपूर्ण भाषा होते हुए भी ‘माँ हिन्दी’ का एक दुर्भाग्य तो अवश्य है कि उसके पास 121 करोड़ बेटे – बेटियाँ तो हैं, किन्तु उसके अधिकांश बेटे बेटियाँ उसकी सेवा करने में असमर्थ हैं क्योंकि वे अंग्रेज़ियत की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं और स्वयं असहाय हैं |
मेरा एक सबसे प्रिय मित्र है | चूँकि अन्तर्जाल (इन्टरनेट) और व्हॉट्सएप का युग है तो हर महत्वपूर्ण दिवस की स्टेटस अपडेट मैं व्हॉट्सएप पर डालता ही रहता हूँ | अपने उस मित्र के साथ भी मैं सदैव हर जानकारी बाँटता रहता हूँ | वह भी कुछ दिवसों की शुभकामना अपडेट कभी कभार व्हॉट्सएप पर डाल देता है | चूँकि हिन्दी दिवस आने वाला था तो मैने अपने मित्र को सम्पूर्ण विश्व की सर्वाधिक प्राञ्जल भाषा का महत्व बताने के लिये अनेक लेख भेजे | मै नहीं जानता कि उसने एक भी लेख पढ़ा या नहीं, लेकिन अन्दाज़ा है कि शायद नहीं पढ़ा, क्योंकि आज के युवाओं को हिन्दी उबाऊ लगती है और लेख में यह बात और स्पष्ट सिद्ध हो जायेगी |
अन्ततः हिन्दी दिवस आया | वैसे तो मित्रगण आपस में अनेक प्रकार के दिवसों की शुभकामनाएँ देते हैं, मैने भी अपने मित्र को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ देते हुए अनेक सुंदर-सुंदर संदेश बड़ी लगन से ढूँढकर भेजे | उसने सभी संदेश देखे लेकिन एक पर भी शुभकामना नहीं दी | मैने स्टेटस पल भी ‘हिन्दी दिवस’ का महत्व बताते हुए अनेक चित्र डाले | वे सब मेरे उस मित्र ने देखे | मैने सोचा कि शायद मेरे स्टेटस को देखकर वह कम से कम एक चित्र तो ‘हिन्दी’ की विशेषता, हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं का अपने स्टेटस पर डालेगा | लेकिन मेरी उम्मीद गलत निकली, उसके लिये हिन्दी दिवस का तो शायद कोई महत्त्व ही नहीं था या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उसने सोचा हो कि अगर मैं हिन्दी दिवस की शुभकानाएँ स्टेटस पर डालूँगा तो कहीं अन्य मित्रों के सामने मुझे लज्जित न होना पड़े |
इस प्रकार उसने ‘हिन्दी दिवस’ की शुभकामना सूचक एक भी संदेश का प्रयोग नहीं किया | चूँकि सर्वाधिक प्रिय मित्र था अतः किंचित् दुःख हुआ | हर बात की शिकायत करता था उससे, किंतु इस बात की कोई शिकायत नहीं की, आखिर उसकी स्वेच्छा थी | लेकिन आज जब उसके स्टेटस पर एन.एस.एस. दिवस की शुभकामना से सम्बन्धित तीन चित्र देखे तो पीड़ा जाग उठी, हिन्दी दिवस के लिये एक भी नहीं | हालाँकि मुझे एन.एस.एस. दिवस की शुभकामना से कोई तकलीफ नहीं थी, किंतु इस बात से अवश्य व्यथित हुआ कि माँ तो हम दोनों की एक ही थी लेकिन मेरे उस भाई ने माँ के सम्मान में एक शब्द भी न कहा, लेकिन अन्य दिवसों की सुध उसको बखूबी रही |
एक दो दृष्टान्त और स्मृति पटल पर आते हैं, किसी अन्य लेख में लिखूँगा लेकिन अन्त में यही कहना चाहूँगा कि हम बेटे और बेटियों ने ही अपनी माँ हिन्दी का तिरस्कार कर रखा है | फिर सोचते हैं कि हिन्दी उत्सव की भाषा नहीं है | माताएँ या भाषाएँ कभी भी अपने गौरव या रुतबे से महान नहीं बनतीं बल्कि वे तो अपने बेटों और बेटियों से महान बनती हैं | हम सोचते हैं कि हिन्दी कोई उत्सव की भाषा नहीं, कोई शुभकामनाओं की भाषा नहीं, बल्कि हमे तो इस दिवस को प्रसन्न होकर मनाना चाहिये, गर्वित होकर शुभकामनाएँ देनी चाहिये कि हमने ऐसी भाषा में जन्म लिया है जो विश्व की सबसे शाश्वत और प्राञ्जल भाषा है | हमे गर्व होना चाहिये कि हिन्दी एकमात्र ऐसी भाषा है जिसका अक्षरकोश- जिसका शब्दकोश- जिसका ज्ञानकोश- जिसका काव्यकोश- जिसका साहित्यकोश अन्य भाषाओं से भी कई गुना ज़्यादा बड़ा है |
हम तो ऐसी भाषा के भाषी हैं जिसमें सूर, तुलसी, कबीर, रहीम, केशवदास, बिहारी, रसखान, मीरा, रैदास, सदना, नामदेव, भिखारीदास, पद्माकर, मतिराम, चन्द्रशेखर, दादू, रामानंद, जायसी, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, सुमित्रानन्दन पंत, शिवमंगल सिंह सुमन, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद, दुष्यंत, माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, अयोध्या सिंह उपाध्याय रवीन्द्रनाथ टैगोर, बाबा नागार्जुन, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय, हरिवंश राय बच्चन, बाल मकुन्द गुप्त, प्रताप नारायण मिश्र, बालकृष्ण बैरागी, मुंशी प्रेमचन्द, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ नगेन्द्र, अटल बिहारी बाजपेयी जी जैसे अनेक महान कवियों व लेखकों की महनीय परम्परा रही है |
भले ही हम हिन्दी दिवस की शुभकामना नहीं देना चाहते, हिन्दी को उत्सवधर्मिता की भाषा नहीं मानना चाहते लेकिन हमारी माँ हिन्दी इस सम्पूर्ण विश्व की सर्वाधिक प्राञ्जल और गरिमामयी भाषा है,
अन्त में एक बार और हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ,
क्योंकि बाकी दिवस एक दिन के हो सकते हैं, लेकिन हमारे लिये हिन्दी दिवस उस दिन शुरु हुआ था, जिस दिन जन्म लेने के बाद हमने पहला शब्द हिन्दी में सुना था, पहला शब्द माँ भी हिन्दी में बोला था और हमारे मरने के बाद भी हर एक दिन हिन्दी दिवस रहेगा |
हम भारतवासी भले ही हिन्दी का उत्सव न मनायें लेकिन हिन्दी का उत्सव अनहद है, अनन्त है | ये अमेरिका में भी है और कैलिफोर्निया में भी | बाबा तुलसीदास का रामचरितमानस पूरे विश्व में सर्वाधिक आदर के साथ पढ़ा जाता है | हिन्दी ही सम्पूर्ण विश्व में एकमात्र ऐसी भाषा है जो 24 घण्टे बोली या सुनी जाती है, अंग्रेजी में भी यह बात नहीं है | बस आवश्यकता है कि उसके खुद के बेटे – बेटियाँ समझ जायें |