क्या सोचूं मैं तेरे बारे में
क्या सोचूं मैं तेरे बारे में,
नहीं है इतनी फुरसत मुझको,
तेरी तरह ही फंसा हुआ हूँ मैं,
अपनी इच्छाओं के मकड़जाल में,
गुमराह हूँ अपने सपनों में,
हवा के साथ चलने के लिए,
शेष कुछ भी नहीं रखने के लिए,
तस्वीर अपनी बदल रहा हूँ।
क्या सोचूं मैं तेरे बारे में,
खामोश हूँ तेरी तरह मैं भी,
और कर रहा हूँ सामना मैं भी,
बदलती हुई परिस्थितियों का,
सह रहा हूँ मैं भी पीड़ाएँ,
मेरी बदनामी और बर्बादी की,
जो कल को हुई थी,
लेकिन किसको दूँ दोष इसका।
क्या सोचूं मैं तेरे बारे में,
कर रहा हूँ मैं भी कोशिश,
मिटाने के लिए गलतफहमियां,
जिनसे पैदा हुई है दूरियां,
उकसाने वाले तो बहुत है,
तुमने क्या सोचा है मेरे बारे में,
और मुझको क्या करना है अब,
काम नहीं करता है मेरा दिलोदिमाग।
क्या सोचूं मैं तेरे बारे में———————।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)