क्या सुनाऊँ अपनी कहानी
गीत
क्या सुनाऊं अपनी कहानी
क्या सुनाऊं सबकी कहानी
घर का राजा, घर की रानी
महल न दासी ,जीवन पानी
उल्लासों ने जब घर छोड़ा
मल्लाहों ने जब मुँह मोड़ा
एक नदी प्यासी यह कहती
लहर-लहर बस जीवन पानी
क्या सुनाऊँ अपनी कहानी…
आँखों में था दिल का टुकड़ा
सूना दर्पण, उसका मुखड़ा
पीठ फेर कर, खड़ा सहारा
जली-कटी अब उसकी बानी
क्या सुनाऊँ अपनी कहानी…
रात-रातभर रोया सिसका
तारें पूछें यह जग किसका
ठिठके अब्बा, ठिठकी अम्मी
ऐ अल्लाह, क्यों गई जवानी
क्या सुनाऊँ अपनी कहानी…
तन्हा-तन्हा अपनी बातें
तन्हा-तन्हा अपनी रातें
पोता-पोती औ रखवाली
वाह वाह ऐ साँस रवानी
क्या सुनाऊँ अपनी कहानी…..
-सूर्यकांत द्विवेदी