क्या सितम है कि मुलाक़ात नहीं कर सकते।
क्या सितम है कि मुलाक़ात नहीं कर सकते।
आज हम उन से कोई बात नहीं कर सकते।
जो समझ बैठे हैं दुख दर्द को क़िस्मत अपनी।
अपने तब्दील वो हालात नहीं कर सकते।
अपने माज़ी पे हमें फ़ख्र है दौरे हारिज़।
तर्क हम अपनी रिवायात नहीं कर सकते।
बोलने पर तो हमारे नहीं कोई बंदिश।
हाँ मगर उन से सवालात नहीं कर सकते।
बात को समझो इशारों में हमारी इस वक़्त।
खुल के इज़्हारे ख़यालात नहीं कर सकते।
चैन दिन को है न आराम क़मर रात को है।
अब बसर ऐसे भी दिन रात नहीं कर सकते।
जावेद क़मर फ़िरोज़ाबादी