क्या शिव और शंकर एक ही हैं?- आनन्द्श्री – जो ईश्वर को जान लेता है वह ईश्वर ही बन जाता है , शिव एहसास है।
क्या शिव और शंकर एक ही हैं?- आनन्द्श्री
– जो ईश्वर को जान लेता है वह ईश्वर ही बन जाता है , शिव एहसास है।
शिवलिंग निराकार है तो शंकर आकार है। शिव मंगल कारी है। वह देव के भी देव है। महादेव है।
इंसान की यात्रा भी निराकार से आकार और फिर आकार से निराकार की है। पुराणों के अनुसार भगवान शंकर को शिव इसलिए कहते हैं कि वे निराकार शिव के समान हैं। निराकार शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के 2 नाम बताते हैं। असल में दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग (शिव ) का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर 2 अलग-अलग सत्ताएं हैं।
हर परिस्थिति में मन सामान रहे।
चंद्र को धारण करने वाले गंगाधर प्रतिक है पवित्र विचारो का, पवित्र तरंगो का,मन की शुद्धता का, कैलाश पर बैठा लेकिन कोई अहंकार नहीं। ऊँचे पद पर बैठा है फिर भी शांत मौन शीतल है। अपने समझ के नेत्र को , तीसरी नेत्र को खोलना है। यह नेत्र को खोलकर ही संसार को देखेंगे तो कर्ता कौन है पता चलेगा। शिव अंदर के सन्यासी का प्रतिक है और शंकर बाहरी तत्व का प्रतिक है।
जो ईश्वर को जान लेता है वही ईश्वर बन जाता है
गले का सांप, सांप नहीं बल्कि हमेशा ऊंचाई पर ले जाने वाली सीढ़ी है। ईश्वर का सांप , भक्ति से सीढ़ी बन जाती है। यह महाशिव्रात्रि आपको सचमुच में नया जीवन दे, आपके सारे पापो को मिटाकर नया जीवन , पाप मुक्त जीवन से आपको नया बना दे।
अगर आप सचमुच में महाशिवरात्रि को रूपांतरित हो कर नया बनकर उभरते है तो आपने सचमुच में शिव को पा लिया। आपने शिव की अवस्था को पा लिया। हर दुःख रूपी में आप खुश रहना सिख लेते है तो आपन ने शिव को पा लिया। शिव पर आस्था रखने वाला कभी दुःख नहीं मना सकता है। इस लिए कहते है ॐ नमः शिवाय। यही मन्त्र है हमेशा शिव के संपर्क में रहने का। यही डमरू है ईश्वर तक अपनी प्रार्थना पंहुचाने का। सर्वसाधारण , प्रेम, अहंकाररहित होकर हिओ शिव को पा सकते है इसलिए तो बुद्धि से भरा रावण शिवलिंग को नहीं ले जा सकता। राम एहसास है , शिव एहसास है। आप इस एहसास में रहे यही प्रार्थना एवं मनोकामना है।
प्रो डॉ दिनेश गुप्ता – आनंदश्री
आध्यात्मिक व्याख्याता एवं माइंडसेट गुरु
मुंबई
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