क्या वो भी…
खुद में तन्हा अकेला बैठा
मैं अक्सर सोचता हूं उसे
क्या सच में
वो भी मुझे सोचती होगी
जैसे मैं समेट लेना चाहता हूं
उसकी यादों का कतरन
क्या वो भी
यादों की किताब के पन्ने पलटती होगी
वक्त की गुस्ताखियो पर उसकी खामोशी
और मेरी चुप्पी का वो हिस्सा
क्या उसे भी सालता होगा
क्या उसे भी मेरे साथ
उस नदी के पुल पर बैठने का मन फिर से करता होगा
जो कांटा मेरे उंगलियों में आ चुभा
क्या दर्द उसका
उसे भी उतना महसूस होता होगा
जैसे मेरे आंगन का चांद घटता जा रहा है उसके बिना
क्या वही चांद उसके छत पर भी निकलता होगा
_@bhishek Rajhans