क्या वजह लिखूँ ?
क्या वजह लिखूँ ?
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क्या वजह लिखूँ तेरे इश्क की ?
कोई वजह नहीं ,बेवजह हुआ !
ना कोई प्रतिस्पर्धा थी……….
बस प्रेम में मैं तो अजय हुअा ||
चलता गया मैं प्रेम डगर पर !
राहों में कहीं भटकन ना थी |
राह अंधेरी , पथ था सूना…..
पर ! कोई भी खटकन ना थी |
मिली मुझे तुम मंजिल बनकर ,
अब ओर कोई दरकार ना थी |
तुम ही शासक , तुम ही प्रजा….
तुझ बिन कोई सरकार ना थी ||
तुम ही मेरी सुबह की पूजा ,
तुम बिन कोई अजान ना थी |
तुम बनी दीपशिखा ! दीप की ,
मेरी ओर कोई पहचान ना थी ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार दीप